Monday 24 September 2018

बाढ़ नियन्त्रण और प्रबन्धन में सक्रिय जनभागिता एक ठोस विकल्प : Dr. B. S. Tanwar



आज चुनौती देष के कई इलाकों को बाढ़ के प्रकोप से बचाने की है । पिछले 70 वर्षो से केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा कई प्रयास किये गये है लेकिन बाढ़ की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है और जलवायु परिवर्तन की वजह से उग्र हुई है ।







बाढ़ नियन्त्रण और प्रबन्धन में सक्रिय जनभागिता एक ठोस विकल्प

(बाढ़ से सड़कें अब बनी नदी नाले और देष में चहुंओर हाहाकार जिसके समाधान हेतु जनसहयोग जन सहभागिता तथा शासन - प्रषासन और आमजन के बीच प्रगाध सम्बन्ध व समन्वय बनाना अनिवार्य)
जहाॅ कहते हैं कि जल बिना नहीं कल वहीं आज अतिवृष्टि से शासन - प्रषासन की काम नहीं कर रही ंहै अकल । पहाड़ों से मैदान तक जमकर बरसे बादल और भारत के कई राज्यों में तेज बहाव से जनता - जनार्दन आमजन भयभीत, पीड़ित और परेषान हुई है । आजादी के सत्तर वर्ष बीत जाने पर केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा अरबों - खरबों रूपये बाढ़ नियन्त्रण व प्रबन्धन पर खर्च करने के पश्चात् भी समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है । सरकारी तंत्र ने मनमानी ढंग से योजनाएं और परियोजनाएं बिना जन सहभागिता के बनाई और उन्हें क्रियान्वयन किया गया । इनमें न किसी की जिम्मेदारी और न जवाबदेही है । शासक बदलते गये और प्रषासक रिटायर होते गये । खुदा न खास्ता अब भी इनकी अकल आ जाऐं और सर्वे - प्लानिंग से लेकर बाढ़ नियन्त्रण और प्र्रबन्धन में योजना - परियोजना बनाने एवं इन्हें क्रियान्वयन करने व देखरेख करने तक में जनमानस की तन - मन - धन से भागीदारी निष्चित कर सभी प्रकार का सहयोग व योगदान सम्मानपूर्वक बिना किसी भ्रष्टाचार के लिया जाये तो सम्भवतया बाढ़ की समस्या से निजात पाया जा सकता है । सोचें, समझे और करें कि यह जनता में विष्वास पैदा करें कैसे सम्भव होगा । 
पहला कि तुरन्त ईमानदार व योग्य बाढ़ विषेषज्ञों की केन्द्र, राज्य व जिला स्तर पर टास्क फोर्स की टीमें बनाकर स्थानीय प्रबुद्ध जनमानस को शामिल कर यह समीक्षा की जावें कि पिछले 75 वर्षो में प्रत्येक जिले में किस स्तर की बारिष के हालात पर बाढ़ का प्रकोप पैदा हुआ और किस प्रकार की हानि हुई । बाढ़ से निपटने के लिए बाढ़ के दौरान तथा उपरान्त क्या उपाय किये गये । यह वस्तु स्थिति व कारण जानना जरूरी है । 
दूसरा कि जिला व क्षेत्र के स्तर पर प्राकृतिक ड्रेनेज का ढांचा क्या है ? उस ढांचें मंे विकास के नाम से किस प्रकार का अतिक्रमण हुआ है । गांवों के स्तर पर वन व जंगल भूमि तथा चरागाह भूमि पर बेहताषा अतिक्रमण हुआ है । शहरों के स्तर पर पहले तो मास्टर प्लान बाढ़ की परिस्थितियों को देखकर नहीं बनाये गये एवं शहरों व शहरों की परिधि क्षेत्रों में वाटर बाॅडीज का ठीक प्रकार से प्रयोजन नहीं किया गया और जो पहले से पुरानी वाटर बाॅडिज स्थित थी उनका अतिक्रमण कर शहरों का विस्तार कर दिया गया । शहरी क्षेत्रों में जो प्राकृतिक नदी - नालें बह रहे थे उनका भी बुरी तरह अतिक्रमण कर लिया गया और यहाॅ तक कि जो नाले बचे उन पर सीमेन्ट ब्लाॅक डाल कर गृह निर्माण तक कर दिया गया । इस दोषपूर्ण कार्य में भ्रष्ट संबंधित अधिकारियों ने भ्रष्ट स्वार्थी लोगों का पूरा सहयोग किया और यहाॅ तक कि कोर्ट के न्यायायिक आदेषों की भी अवहेलना करते हुए कोई न कोई बहाना बनाकर प्रषासनिक अधिकारियों व उनसे मिलने वाले लोग व सगे संबंधियों ने परवाह नहीं की तो अतिवृष्टि के दौरान अब बेचारी शहरों की सड़कों ने तो नदी - नाले बनना ही था । 
तीसरा कि वन जंगल व कृषि क्षेत्र में पेड़ों की कटाई की क्या स्थिति बनी है । साथ ही ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में भूमि पर पक्के निर्माण कार्यो से चाहे मकान व सड़क हो इनसे बाढ़ की उग्रता पर क्या और कैसे असर हुआ है । जहाॅ तक पक्के मकानों का सवाल है विषेषकर शहरों में केन्द्र, राज्य व नगरीय सरकार द्वारा कुछ वर्षो से छत वर्षा जल की वाटर हार्वेस्टींग की नीति बनाकर भूजल रिचार्ज का प्लान बना दिषा - निर्देष जारी किये गये हैं । लेकिन यह प्लान कागजों मे सिमट कर रह गया । कई कारणों से यह प्लान लोकप्रिय - जनप्रिय नहीं हो पाया । यह मूलरूप से जनता प्लान था जो सरकारी ब्यूरोक्रेसी में फंस कर उलझ गया । हमारे देष भारत में यह बड़ी विडम्बना है कि आजादी मिलने के उपरान्त लगातार बड़ा लोकतंत्र - प्रजातंत्र का ढोल पिटा जा रहा है लेकिन ग्राउण्ड टूथ यह है कि विधिवत अरबों रूपयों के जो कार्यक्रम बनते है बिना वास्तविक जनसहभागिता के पूर्णरूप से कामयाब नहीं हो पाते है । राजतंत्र में भ्रष्टाचार छिछली राजनीति - सियासत और भयानक अहंकारवाद की वजह से जनता राजतंत्र के कार्यक्रमों के क्रियान्वयन से सामान्यतौर पर दूर रहना पसन्द करती है । ईमानदार योग्य होनहार राजनीतिज्ञों, प्रषासनिक अधिकारियों और समाज सेवकों को आगे बढ़कर पहल कर वर्तमान दोषपूर्ण स्थिति में बड़े सुधार लाना वांछनीय है । 
चैथा कि वर्षाकाल के प्रारम्भ होने और इस बीच मौसम विभाग वर्षा कितनी किस क्षेत्र में और कितने समय होने की सम्भानाओं पर अपन भविष्यवाणी घोषित करती है । इन घोषणाओं के खरी नहीं उतरने पर अक्सर जनता का विष्वास टूट जाता है । लेकिन कभी - कभी अकस्मात् तेज वर्षा हो भी जाती है जिससे बिना एडवांस तैयारी के बाढ़ की स्थिति बनने पर भारी जान-माल के नुकसान का सामना करना पड़ जाता है । 
पांचवा केन्द्र व राज्य सरकार ने बाढ़ नियन्त्रण नीति व अन्य भारी भरकम भूकम्प व सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए विभिन्न स्थानों पर आपदा प्रबन्धन केन्द्र स्थापित किये हैं लेकिन ये केन्द्र प्रभावषाली रूप से कार्य नहीं कर पा रहे है । कारण कि पर्याप्त मात्रा में योग्य स्टाफ एवं बजट उपलब्ध नहीं कराया गया है । जिससे ये संस्थाएं केवल अकादमिक बन कर रह जाती है । 
छठा कि भयंकर आपदाओं के आने पर कुछ आर्थिक रूप से मजबूत देष मदद के स्वरूप आगे आकर भौतिक व वित्तीय सहायता मानवता बचाने के नाम देते हैं लेकिन ‘‘गुड गवर्मेन्ट’’ की कमी की वजह से ऐसी सहायता का समयबद्ध सही उपयोग नहीं हो पाता है । ऐसे मुष्किल वक्त पर भी जनसहभागिता की आर्गेनाइज्ड रूप में कमी खलती है । 
सतवां कि विभिन्न राज्य और जिला स्तर पर कई छोटे और मध्यम बांध व बड़ी नदियों पर कुछ बड़े बांधों का निर्माण किया गया है । हालांकि सिंचाई उपलब्ध कराना मुख्य उद्देष्य था लेकिन कई जगह पेयजल उपलब्ध कराना भी दूसरा उद्देष्य था । इन बांध संरचनाओं ने अपने कमान क्षेत्र में बाढ़ नियन्त्रण यानि बाढ़ रोकने में भी बड़े सहायक का कार्य किया है । लेकिन इन संरचनाओं की मेन्टेनेंस व उचित देखरेख नहीं होने की वजह से कभी - कभी कुछ हादसे हो जाने से उलटे कमान क्षेत्र में बाढ़ आने की सम्भावनाएं पैदा हो जाती है । बड़े तोर पर बांधों में वर्षा जल एकत्रित किया जाता है वैसे ही निजी स्तर पर जनभागीदारी से पक्के मकानों की छत पर, सेटबैक में हाॅज बनाकर, सड़कों के दोनों ओर स्ट्रोम ड्रेनेज, कृषि खेतों में ड्रीप ट्रेन्चें लगाकर व फार्म पौण्ड, जंगलों में सनकन पौण्ड और पहाड़ों के चारों और पेरिफरल ड्रेन्स बनाकर तथा गाँवों - शहरों में तालाब बनाकर वर्षा जल को रोका जाये तो बाढ़ की समस्या कम हो सकती है । 
बाढ़ के आने से मुख्यतौर से तीन तरह की भारी भरकम जन बाधाएं आती है व नुकसान होते हैं । पहली कि गली - गलियारों, सड़क - रास्ता और रेल - पटरियों पर पानी भर जाने तथा बहाव होने से ट्राफिक जाम हो जाता है । दूसरा कि आबादी क्षेत्र में निचले हिस्से के घरों पर पानी भर जाता है एवं कभी - कभी पूरा गांव - मोहल्ला पानी मे डूब जाता है । तीसरा कृषि फसलें पानी में डूबने से विस्तृत तौर से नुकसान होता है । पानी मे डूबकर कई लोगों के मरने की घटनाएं भी होती है । करोड़ों रूपयों के धन सम्पत्ति की आर्थिक हानि होती है । इसके अलावा अधिक समय तक बाढ़ के पानी के रूके रहने पर बीमारियाॅ फैल जाती है जो स्वास्थ्य के लिहाज से कभी - कभी महामारी का रूप भी ले लेती है । 
सरकार के सार्वजनिक उपायों में जनभागीदारी निभाने के अलावा जनमानस अपने निजी स्तर पर बाढ़ के नियन्त्रण व प्रबन्धन मे सहभागिता स्थानीय परिस्थिति के अनुसार अपनी इच्छाषक्ति द्वारा कर सकता है जो बाढ़ राहत में बड़ी उपयोगी सिद्ध हो सकती है । अन्त में दबाव देकर सुझाव है कि शहरों में विषेषकर जनमानस द्वारा पक्के घरों की छतों पर वर्षा जल को छोटे टैंक के रूप में आसानी से एकत्रित करके और भूतल पर उपलब्ध भूमि पर हौज यानि भूमिगत टैंक बनाकर वर्षा जल इकट्ठा तो किया ही जा सकता है । यह पानी नहाने - धोने, लेट्रीन, फर्ष व वाहन साफ करने, घर के बाहर - अंदर पेड़ों की सिंचाई बर्तन साफ करने व किचन गार्डन में उपयोग में लाया जा सकता है । इस विधि पर भी फोकस किया जाये कि गांवों में किसानों द्वारा अपने खेतों पर फार्म पौण्ड व विभिन्न पैटर्न पर उचित गहराई की वर्टीकल खाईयाॅ खोदकर वर्षाजल रोकने से मोयल मोइष्चर को बढ़ावा दिया जा सकता हे । पहाड़ी क्षेत्र में जो वर्षा जल तेजी से पहाड़ के ढलान से नीचे उतरता है उसे पहाड़ के चारों ओर धरातल पर पेरिफेरल खाईयां खोदकर रोका जा सकता है । 
इन अतिरिक्त जन उपायों को जनभागीदारी द्वारा आसानी से अमलीजामा पहनाया जा सकता है, शर्त कि जनता जनसमूह या सेल्फ हेल्प गु्रप बनाकर इनके द्वारा आपसी जनसहभागिता से जनभागीदारी निभाते हुए योजनाबद्ध कार्य किया जाये । इन्हीं सब चर्चित उपायों से बाढ़ के तीव्र आवेग को कम किया जा सकता है और परिणामस्वरूप बाढ़ से पीड़ित जनमानस को काफी राहत मिल सकती है चाहे वह शहरी या ग्रामीण इलाका रहा हो । 
अरावली जल एवं पर्यावरण सेवा संस्थान चित्तौड़ीखेड़ा, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)

 
डाॅ. भगवत सिंह तंवर (तोमर)
पूर्व चीफ इंजीनियर व संस्थान अध्यक्ष
तथा संरक्षक वरिष्ठ नागरिक मंच, चित्तौड़गढ़
+91 9413315843 +91 9413248248  +91 9460490043 (Whats App)
शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वच्छता रख मानवीय मर्यादा और भाईचारा बढ़ाएंे।


- विष्लेषक प्रसिद्ध जल विषेषज्ञ है । लम्बे समय से राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जल संसाधन विकास क्षेत्र से सम्बन्ध रहे है ।