Tuesday 25 October 2016

गंभीरी बांध को नये नजरीये से देखने का समय - डाॅ. तंवर

Gambhiri Nadi Bridge, Chittorgarh 

जल स्वावलम्बन अभियान के तौर पर वर्तमान में राज्य का जल संग्रह पर पूर्ण ध्यान केन्द्रित है, जबकि बांधो का संग्रहित जल भयंकर नष्ट हो रहा है जिसको सम्भालने व समान बंटवारे की जरूरत है। इस संदर्भ में चित्तौड़गढ़ जिले का गम्भीरी बांध एक ज्वलंत उदाहरण पेश कर रहा है। जल उपयोगकर्ताओं के व्यक्ति गलत स्वार्थ एवं जल बचत के प्रति जिम्मेदारी तथा जागरूकता नहीं समझते हुए नहरी अधिनियम, सिंचाई प्रणाली के प्रबंधन में कृषकांे की सहभागिता अधिनियम तथा राज्य जल नीति का प्रभाव यहां गम्भीरी बांध के कमान क्षेत्र में कोई नजर नहीं आता और बांध के करीब 50 प्रतिशत आधे जल को व्यर्थ में नष्ट करने के अलावा सैंकड़ो नलकूप बोरवेल्स के द्वारा भूमिगत जल के अतिदोहिन के परिणाम से क्षेत्र डार्क जोन घोषित किया जा चुका है। इस दुलर्भ परिस्थति में क्षेत्र के भविष्य के आर्थिक विकास का कोई मायना नहीं रह जाता है। अतः आवश्यकता है बांध क्षेत्र को नये नजरीये से देखते हुए बांध के जल को अधिकतम लाभ के प्रयोग हेतु तुरंत सुधार कार्यक्रम लागू किये जाये।
गम्भीरी बांध का निर्माण वर्ष 1957 में पूर्ण होने पर इसके 3200 हेक्टर के भराव क्षेत्र का 2300 मिलियन गन फीट पानी दो नहरों द्वारा 35-40 किलोमीटर की दूरी तक करीब 70 गांवो में 7600 हेक्टर के कल्चरेबल कमाण्ड क्षेत्र में बांटा गया जिससे लगभग 11708 किसानों का तत्कालीन रबी फसल की सिंचाई करने के लिए काफी कुछ हद तक फायदा पहुंचाया गया था। समय बीतने के साथ किसानों ने बीड़ क्षेत्र को कृषि भूमि में परिवर्तित किया और जल की मांग बढ़ने पर कुंओं से हटकर कई नलकूप लगा जलापूर्ति की गई। यह गति इतनी तेज बनी कि भूजल का अतिदोहन होने पर चित्तौड़गढ़ और निम्बाहेड़ा ब्लाॅक्स को वर्ष 2012 में नोटिफाइड कर आगे के लिए नये नलकूप लगाने पर रोक लगा दी गई। इससे पहले वर्ष 2010 में बांध के सिंचाई क्षेत्र का प्रबंधन 9 जल उपभोक्ता संगम को स्थानान्तरित कर दिया गया। इन जल उपभोक्ता संगम के प्रभावशाली तरीके से कार्य नहीं कर पाने से जहां वर्तमान में बांध का व भूमिगत जल दोनों ही नष्ट हो रहे है वही नहरी जल की रेवेन्यू नहीं एकत्रित होने से राज्य को वित्तीय नुकसान भी हो रहा है।
डाॅ. तंवर पूर्व चीफ इंजीनियर व अध्यक्ष अरावली जल एवं पर्यावरण सेवा संस्थान के अध्ययन के अनुसार बांध के प्रति एक हजार लीटर जल के उपयोग पर किसानों को केवल 2 रूपये का लाभ प्राप्त हो रहा है, जबकि जल व्यापार व उद्योग क्षेत्र में लाभ हजारों में प्राप्त होता है। कारण है कि जल के कृषि में अव्यवस्थित उपयोग से एक किलो गेहूं पैदा करने में 1350 किलो (5 ड्रम) पानी खर्च हो रहा है। इसलिए आर्थिक विकास एवं रोजगार को प्रोत्साहन देने के लिए वैज्ञानिक तौर पर कृषि सिंचाई के अलावा उद्योगों को प्रेरित कर उनके लिए बांध के जल में आवश्यक हिस्सा तय कर पानी दिया जाये और विशेषकर बड़े उद्योगो जैसे स्थानीय नई व पुरानी सीमेन्ट उद्योग ईकाईयों पर सीएसआर गतिविधियों के अन्तर्गत बांध जल उपयोग व्यवस्था सुधार कार्यक्रम की जिम्मेदारी डाली जाये और जिसमें जल उपभोक्ता संघो की जल एवं वित्तीय प्रबन्धन की योग्यता व क्षमता बढ़ाना भी शामिल किया जाये। इस व्यवस्था से किसानों को अवश्व लाभ होगा और साथ ही उद्योगों को आवश्यक जल प्राप्त होने से स्थानीय आर्थिक विकास को गति मिलने के साथ ही युवाओं के लिए लाभदायक रोजगार के साधन बढ़ेगें।

- डाॅ. भगवतसिंह तंवर, पूर्व चीफ इंजीनियर
अध्यक्ष अरावली जल एवं पर्यावरण सेवा संस्थान, 
चित्तौड़ीखेड़ा, चित्तौड़गढ़
मो. 9413315843
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