Thursday 18 June 2015

ग्वालियर महाराजा वीरवर रामशाह तोमर को हार्दिक श्रृंद्धाजली

‘‘जय हल्दीघाटी ! जय चित्तौडगढ ! जय मेवाड़'' !!
शूरवीरों की याद को शीतल खून खोल उठता है,
सोये भले मानुष को भी वीरता के कार्य करने का बल मिलता है।
(18 जून 1576 हल्दीघाटी महायुद्ध के सभी वीर-शुरवीर शहीदों की पुण्यतिथि पर नमन व श्रद्धा सुमन अर्पित)
स्वतंत्रता संग्राम का एक महान सूपात- प्रसिद्ध हल्दीघाटी युद्ध भुलाये बिसरे महान बलिदानी शहीद
ग्वालियर महाराजा वीरवर रामशाह तोमर को हार्दिक श्रृंद्धाजली 18 जून 2015
हल्दीघाटी के युद्ध में ही वीरवर रामशाह तोमर ( तंवर) के तीन शहीदी वीर सपुत्र
सम्मानीय प्रिय चित्तौड़-मेवाड़वासियों, सादर नमस्कार !
  1. 18 जून 1576 को स्वतंत्रता और स्वाभिमान के लिये दिल्ली के अकबर बादशाह से लड़े प्रसिद्ध हल्दीघाटी युद्ध' ने वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप तथा इस ऐतिहासिक युद्ध में शहीद हुए महाबली वीर पुरूषों एवं मेवाड़ का नाम भारत और सम्पूर्ण विश्व में प्रचलित कर दिया। हल्दीघाटी के युद्ध से 9 वर्ष पहले सन् 1567 का चितौड़गढ़ पर अकबर के आक्रमण के दौरान महाराजा उदयसिंह द्वारा लड़ा गया चितौड़गढ़ युद्ध भी बड़ा प्रसिद्ध है। 2
  2. हल्दीघाटीके महायुद्ध में शहीद हुए बड़ीसादड़ी के झाला मानसिंह और सेनापति हकीम खां सूरी का नाम तो आम जनता जानती है। लेकिन युद्ध के दायें भाग का नेतृत्व करते हुए चम्बल घाटी के वीरवर ग्वालियर महाराजा रामशाह तोमर (तंवर) के साथ ही इनके तीन वीर बलिदानी सुपुत्र कुंवर शालीवाहनसिंह, भवानीसिंह व प्रतापसिंह तथा एक पौत्र 16 वर्षीय भंवर बलभ्रद सिंह भी तीन पीढ़ियों तक का राज परिवार बड़ी बहादुरी से लड़ते-लड़ते शहीद हो गया। इस बेमिसाल सर्वोच्चबलिदानके बारे में मेवाड़ में कुछही प्रबुद्धव्यक्तियों को मालूम होगा। 
  3. यह बात भी जानने वाली है कि महाराजारामशाह के साथ सन् 1558 में चम्बल घाटी से आये सैकड़ों तोमर( तंवर), भदोरिया, सिक्करवार, जादौन एवं परमार बहादुर राजपूत सरदार हल्दीघाटी में युद्ध करते हुए शहीद हो गये । उन्ही के कुछ परिवार एक के बाद एक महाराणा मेवाड़ की फौज में रह कर गेवाड़ को अपनी सेवायें पीढ़ी दर पीढी देते रहे। उन्ही में एक तोमर (तंवर) परिवार ग्वालियर के पास मुरेना जिले के ठिकाना बुधारा से आया और पहले चितौड़गढ़ दुर्ग पर फिर सन् 1950-55 में गांव चितौड़ीखेडा बसा कर दुर्ग के नीचे तलेटी में बस गया। जितने भी महान योद्धा हल्दीघाटी युद्ध में शहीद हुए है उन सबको हम सब मेवाड़-चितौड़गढ़ वासियों की हमारी हार्दिक श्रृद्धांजलि व नतमस्तक होते हुए उनके चरण कमलों में असीम नमन ।महाराजा रामशाह ने सन् 1567 में बादशाह अकबर खिलाफ चितौड़गढ़ युद्ध में भी अपनीशौर्यता दिखाई थी, जो महाराणा उदयसिंह के नेतृत्वमेलड़ा गया। 
  4. हल्दीघाटी युद्ध के लगभग 48 वर्ष बीत जाने के पश्चात् मेवाड़ के बुद्धिमान महाराणा करणसिंह ने झाला मानसिंह व हकीम खां सूरी के अलावा कस्बे खुमनौर से लगी हल्दीघाटी की रक्ततालमें सन् 1624 में वीरवर महाराजारामशाह तोमर( तंवर )वइनके कुंवर वीर पुत्रों वपौत्रकी याद में शिलालेखलगवा कर दो विशेष सुन्दर छत्रियां बनवाई जो आज भी उस महान बलिदान की याद दिलाती है। इतिहासकार गोपालसिंह राठौड ने "हल्दीघाटी, युद्ध का महान योद्धा राजा रामशाह तोमर( तंवर)'' नामक पुस्तक सन् 2011 में लिख छपवा एक प्रशंसनीय योगदान दिया है। 
  5. महाराज रामशाह तोमर (तंवर ) ने केवल शाहदत ही नही दी बल्कि पहले श्री जगमालसिंह को हटाकर सचाई पर डट महाराणा प्रताप को राजगदी पर बेठाने का भी प्रमुख योगदान दिया ।महाराणा उदयसिंहने महाराजारामशाह को ''शाहा के शाह''की उपाधि प्रदानकरने के साथ ही इनके बड़े कुंवर शालीवानसिंह के साथ गहाराणप्रताप की एक बहन की शादी भी करवा ग्वालियर राज परिवार को मेवाड़ प्रान्तका रिश्तेदार बना लिया था। अगर प्रताप मेवाड़ के महाराणा नहीं बन पाते तो मेवाड़ का भारत व विश्व के साथ इतिहास ही नहीं जुडपाता। ऐसी महान विभूति ग्यालियर महाराजा रामशाह तोमर( तंवर) को हम मेवाड़ की जनता नतमस्तक होकर जितनी बार याद करे वनमन करें वो भी कम मानी जानी चाहिए। 
  6. अफसोस है कि तीन पीढ़ियों तक के एक साथ बाहर ग्वालियर से पधारे महाराजा रामशाह तोमर (तंवर) के आश्चर्यजनक सर्वोच्च बलिदान को सन् 1624 के पश्चात् इस महान ऐतिहासिक घटना को स्थानीयमेवाड़महाराणावइतिहासकार यथाउचित तौर पर उजागर नहीं रख पायें। अब भी इस महान विभूति की यादगार को आगे बढ़ाते रहने से जनमानस को अच्छी प्रेरणा मिलती रहेगी। मेवाड़ की गौरवशाली जनता महाराजा रामशाह के उपरोक्त अमूल्य योगदान एवं सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक शहादत को बिना प्रचलित किये नहीं जान पाई। सच्च है कि महाराजा रामशाह तोमर (तंवर) का नाम लिए बिना हल्दीघाटी और मेवाड़ का इतिहास सदाअधूरा समझा जायेगा। चलिये कोई शिकायत शिकवा नहीं --"जो दृढ़राखे धर्म का, तिहि राखे करतार''।आदर भाव के साथ धन्यवाद! जयहिन्द!